रविवार, 8 नवंबर 2009

राज श्री प्रोडक्‍शन्‍स ने कामेडी कान्‍टेस्‍ट में कलाकारों से अभिरूचियां आमंत्रित की

राज श्री प्रोडक्‍शन्‍स ने कामेडी कान्‍टेस्‍ट में कलाकारों से अभिरूचियां आमंत्रित की

हमें खेद है मुरैना मध्‍यप्रदेश में चल रही भारी बिजली कटौती के कारण इस समाचार के प्रकाशन में विलम्‍ब हुआ है, फेलुअर विद्युत सप्‍लाई सही होने तक फोटो व समाचार समय पर हम अपडेट नहीं कर सकेंगे, इसके लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं, कृपया अपडेट के लिये हमें ई मेल, जवाबी मेल या टिप्‍पणीयां न भेजें बिजली कटौती और कई अन्‍य कारणों से हम समय पर अपडेट नहीं दे पा रहे हैं इस सम्‍बन्‍ध में हम अलग से स्‍पष्‍टीकरण व अपनी मजबूरीयों का अलग से शीघ्र ही समाचार दे रहे हैं नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' प्रधान संपादक ग्‍वालियर टाइम्‍स समूह 

 

Comedy Contest!!

Comedy Contest!!

 

Hi Friends,

Rajshri Media (P) Limited has come up with Duniya Ko Hasao Comedy Contest. All you have to do is shoot a funny video of yourself or your surroundings. Feel free to shoot the way you like - video camera, mobile phone, webcam anything and upload it on Rajshri.com. You can also send us a DVD.

Please visit http://www.rajshri.com/duniyakohasao for more information.

The winner gets an opportunity to act in a Rajshri feature film or TV show.

So who knows you might become a star and all you have to do is to make us laugh!

Watch http://www.youtube.com/watch?v=55eW8dfxuHM

Happy Viewing!

Rajshri Team

 

सोमवार, 7 सितंबर 2009

सूचना प्रौद्योगिकी- ई गवर्नेन्‍स- एनईजीपी - उम्दा प्रशासन लाने के प्रयास

सूचना प्रौद्योगिकी

 

ई गवर्नेन्‍स- एनईजीपी - उम्दा प्रशासन लाने के प्रयास

                                                     -- अभिषेक सिंह उप सचिव (ई-गवर्नेस) ; एनईजीपी जागरूकता एवं संचार के नोडल अधिकारी हैं

       पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राज्य सरकारों और केन्द्रीय मंत्रालयों ने ई-गवर्नेन्‍स के युग में प्रवेश के लिए अनेक कदम उठाए हैं। लोक सेवाओं की अदायगी को बेहतर और उनकी प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए अनेक स्तरों पर सतत प्रयास किये जा रहे हैं।

 

       राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्‍स योजना (एनईजीपी) ई-गवर्नेन्‍स के संबंध में उठाए गए कदमों को देश भर के सामूहिक विजन (अन्तर्दृष्टि) में समेकित कर समग्र रूप से एक साझा लक्ष्य के रूप में देखती है। इसी विचार के  अनुरूप देश के सुदूर गांवों तक पहुंच रहे देशव्यापी बुनियादी ढांचे का विशाल नेटवर्क विकसित हो रहा है। अभिलेखों का बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण किया जा रहा है, ताकि इन्टरनेट पर आसानी से भरोसेमंद जानकारी मिल सके।

 

       मूल उद्देश्य उम्दा और सुस्पष्ट प्रशासनिक व्यवस्था को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाना है। आखिरकार, भू-दस्तावेजों  की जानकारी प्राप्त करना, जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट हासिल करना, आयकर  विवरणी दाखिल करना और देश के सर्वोत्तम चिकित्सकों से परामर्श लेना माउस को क्लिक करने जैसा सरल ही होना चाहिए। और यह सब इतना निकट होना चाहिए कि जितना कि पड़ोस की दुकान।

 

राष्ट्रीय योजना की उत्पत्ति

       भारत में ई-गवर्नेन्‍स का परिदृश्य अब सरकारी विभागों के कम्प्यूटरीकरण से आगे बढक़र नागरिकों को केन्द्र में रखते हुए  सेवोन्मुखी और पारदर्शी हो चला है। राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्‍स योजना का दृष्टिकोण, कार्यान्वयन पध्दति और प्रबंधन संरचना का अनुमोदन सरकार ने 2006 में किया था। पूर्व में उठाये गए विभिन्न कदमों की सफलताओं और विफलताओं  के अनुभवों ने देश की ई-गवर्नेन्‍स रणनीति को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

 

       इस धारणा का उचित संज्ञान लिया गया है कि यदि राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों के स्तर पर ई-गवर्नेन्‍स में तेजी लानी है तो साझे विजन और रणनीति से निर्देशित कार्यक्रम का दृष्टिकोण अपनाना होगा।

 

       इस दृष्टिकोण को मुख्य और सहायक बुनियादी सुविधाओं के  आदान-प्रदान के जरिए खर्च में पर्याप्त बचत करने वाले उपाय के रूप में देखा गया है। निश्चित मानदंडों के आधार पर एक दूसरे के साथ मिलकर व्यवस्था को चलाया जा सकता है। इस दृष्टिकोण को नागरिकों के समक्ष सरकार का सही दृश्य पेश करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।

 

एनईजीपी यूनिवर्स

       एनईजीपी में केन्द्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के स्तर पर लागू की जाने वाली 27 मिशन रूपी और आठ सहायक घटकों वाली परियोजनाएं  शामिल हैं। सहायक घटकों का उद्देश्य उचित प्रशासनिक और संस्थागत व्यवस्था, मुख्य बुनियादी ढांचा, और ई-गवनर्ेंस अपनाने के लिए आवश्यक कानूनी ढांचे का गठन करना है। आठ सहायक घटक मिशन रूपी परियोजनाओं से परे हैं और उनकी जवाबदेही सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीआईटी) और प्रशासनिक सुधार और जन शिकायत निवारण विभाग (डीएआर एंड पीजी) पर है। डीआईटी के घटक हैं कोर इन्फ्रास्ट्रक्चर (एसडब्ल्यूएएन, एसडीसी और सीएससी), सपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर, तकनीकी सहायता टेक्निकल असिसस्टेंस, प्रमुख नीतियां कोर पालिसीज और आर एंड डी  डीआईटी और डीएआर एंड पीजी के संयुक्त उत्तरदायित्व के क्षेत्र हैं-एचआरडीप्रशिक्षण, संगठनात्मक संरचना और जागरूकता तथा मूल्यांकन।

 

मिशन रूपी परियोजनाएं

 

                ,ubZthih ds vUrxZr 27 fe'ku ifj;kstuk,a vkrh gSaA buesa ukS dsUæh;] X;kjg jkT; vkSj lkr fofé ea=ky;ksa fokxksa esa QSyh ,dh—r ,e,eih fe'ku :ih ifj;kstuk,a lekfgr gSaA fe'ku eksM का तात्पर्य है कि परियोजनाओं का उद्देश्य और क्षेत्र स्पष्ट रूप से परिभाषित है, परिमेय निष्कर्ष (सेना स्तर) और सुपरिभाषित मुकाम तथा कार्यान्वयन की समय सीमा दी हुई है। उच्च नागरिक और व्यापार मिलन बिन्दु के आधार पर चिन्हित 27 मिशन रूपी परियोजनाएं इस प्रकार हैं --

केन्द्रीय मिशन रूपी परियोजनाएं

       एमसीए 21, पेंशन, आयकर, पासपोर्ट और वीसा आव्रजन, केन्द्रीय उत्पाद कर, बैंकिंग, एमएनआईसी  यूआईडी, ई-कार्यालय और बीमा।

 

राज्यों की मिशन रूपी परियोजनाएं

       भू-अभिलेख प्रथम चरण, भू-अभिलेख द्वितीय चरण एवं पंजीकरण, सड़क परिवहन, कृषि, पुलिस, कोषालय, नगरपालिकाएं, ई-जिला, वाणिज्यिक कर ग्राम पंचायत और रोजगार कार्यालय।

 

एकीकृत मिशन रूपी परियोजनाएं

       सीएससी, ई-न्यायालय, ईडीआई, इंडिया पोर्टल, एनएसडीजी, ई-बिज़, ई-प्रोक्योरमेंट (वसूली)।

 

सामान्य सेवा केन्द्र

       सरकार ने 6 लाख से अधिक गांवों में एक लाख से अधिक सामान्य सेवा केन्द्रों की स्थापना की मंजूरी दे दी है। सरकार ने जो योजना मंजूर की हैं, उसके अनुसार, सीएससी की भारतीय नागरिकों को केन्द्रीय, निजी और सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं की एकीकृत अदायगी का प्रारंभिक बिन्दु के रूप में कल्पना की गई है। इसका उद्देश्य एक ऐसा मंच तैयार करना है जो सरकारी, निजी और सामाजिक क्षेत्र के संगठनों को उनके सामाजिक और व्यावसायिक लक्ष्यों विशेषकर देश के सुदूर गांवों की जनसंख्या के कल्याण से जुड़े विषयों को आईटी आधारित और अन्य सेवाओं के माध्यम से जोड़ सके।

 

       सीएससी, ई-गवर्नेन्‍स, शिक्षा, स्वास्थ्य, टेलीमेडिसिन, मनोरंजन आदि क्षेत्रों में उच्च स्तरीय और किफायती वीडियो, आवाज और आंकड़ों की जानकारी सेवायें प्रदान करने में सक्षम हैं। सीएससी की एक प्रमुख विशेषता यह है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में आवेदन पत्र को डाउनलोड करने, प्रमाण पत्र, बिजली, टेलीफोन, पानी और अन्य सेवाओं के बिलों के भुगतान जैसी वेब-योग्य ई-गवर्नेन्‍स से जुड़ी सेवायें प्रदान कर सकेगा।

 

स्वान (एसडब्ल्यूएएन) के साथ उड़ान भरना और एसडीसी'ज के जरिये सेवा प्रदान करना

       राज्य व्यापी एरिया नेटवर्क (एसडब्ल्यूएएन) योजना एनईजीपी की तीन प्रमुख अधोसंरचनात्मक स्तंभों में से एक है। मार्च 2005 में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित इस योजना के लिए अनुमानत: 33 अरब 34 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसका उद्देश्य प्रत्येक राज्य केन्द्र शासित प्रदेश के मुख्यालय को जिला मुख्यालय से और जिला मुख्यालय को (2 मेगाबाइट्स प्रति सेकेंड) ब्लाक मुख्यालयों से आपस में जोड़ते हुए राज्य व्यापी एरिया नेटवर्क (स्वान-एसडब्ल्यूएएन) स्थापित करना है। यह सुविधा न्यूनतम 2एमवीपीएस (मेगा बाइट्स प्रति सेकेंड) की लीज्ड लाइन पर दी जाएगी। योजना का उद्देश्य जी 2जी और जी2सी सेवायें प्रदान करने के आशय से एक सुरक्षित घनिष्ठ उपयोगकर्ता समूह (सीयूजी) सरकारी नेटवर्क स्थापित करना है।

 

       परियोजना की अवधि 5 वर्ष है जबकि पूर्व परियोजना क्रियान्वयन अवधि  18 महीने की है। एक केन्द्रीय योजना के रूप में अमल में लायी जा रही इस परियोजना के लिए 20 अरब 5 करोड़ रुपए सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने अनुदान के रूप में दिये हैं। शेष राशि अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता (एसीए) के रूप में मिलने वाली राज्य योजना के तहत प्राप्त होगी।

 

       राज्य आंकड़ा केन्द्र (स्टेट डाटा सेन्टर-एसडीसी)- एनईजीपी के तहत एक और प्रमुख संरचनात्मक स्तंभ है। जी-2जी, जी2सी और जी2बी सेवाओं की उम्दा इलेक्ट्रॉनिक अदायगी के लिए सेवा व्यवस्था  उसके इस्तेमाल और बुनियादी ढांचे को सुगठित बनाने के लिए राज्यों में एसडीसीज स्थापित करने का प्रस्ताव है। राज्यों द्वारा ये सेवायें राज्य व्यापी एरिया नेटवर्क (स्वान) और सामान्य सेवा केन्द्र (सीएससी) की ग्रामीण स्तर  तक की कनेक्टीविटी  (संचार संपर्क) जैसी बुनियादी संचार सुविधाओं के सहयोग से दोषरहित ढंग से मुहैया करायी जा सकती हैं।

 

       राज्य आंकड़ा केन्द्र (एसडीसीज) राज्य के केन्द्रीय भंडार, सुरक्षित आंकड़ा कोष, ऑन लाइन सेवा अदायगी, नागरिक सूचना  सेवा पोर्टल, राज्य इन्टरनेट पोर्टल, आपदा की भरपाई, सुदूर प्रबंधन और सेवा एकीकरण का कार्य  करते हुए  अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। एसडीसी'ज की सहायता से आंकड़ा प्रबंधन, आईटी संसाधन प्रबंधन, तैनाती और अन्य खर्चों में अधिक से अधिक कमी लाई जा सकती है।

 

रविवार, 9 अगस्त 2009

ग्वालियर शिक्षा का संभावनाशील 'हब'- राकेश अचल

ग्वालियर शिक्षा का संभावनाशील 'हब'

  • राकेश अचल
  • लेखक वरिष्ठ पत्रकार है

 

धरती उर्वरा हो, तभी उसमें फसल अच्छी होती है। ठीक यही बात शिक्षा और ग्वालियर पर लागू होती है। ग्वालियर उत्तरी म प्र. में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत मे भी एक महत्वपूर्ण 'एज्यूकेशन हब' के रूप में अपनी पहचान बना चुका है।

       ग्वालियर स्वतंत्रता पूर्व से ही शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। ग्वालियर के तत्कालीन शासकों ने शिक्षा के महत्व को बहुत पहले समझ और पहचान लिया था। ग्वालियर दरबार ने भी शिक्षा को रियासत की जिम्मेदारी के रूप में लिया और 1846 में 'लश्कर मदरसा' के नाम से लश्कर में पहला आधुनिक शिक्षा विद्यालय खोला। रियासत के एक मंत्री श्री दिनकर राव राजवाड़े की व्यक्तिगत रूचि के कारण 1852 से 1859 के बीच ग्वालियर में अंग्रेजी शिक्षा भी प्रारंभ कर दी गई। ग्वालियर अकेली ऐसी रियासत थी जहां 1857 में दो हजार से अधिक आबादी वाले गांवों में स्कूल खोल दिये गये थे।

       ग्वालियर में 1885 में हाईस्कूल तथा 1890 में इन्टरमीडिएट कालेज की स्थापना कर दी गई थी। 1887 में ही ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की रजत जयंती स्मारक के रूप में बनी इमारत में विक्टोरिया कालेज की स्थापना की गई। इस इमारत का लोकार्पण 1899 लार्ड कर्जन ने किया। इसी इमारत में आज महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय संचालित हो रहा हे।

       ग्वालियर में 1895 में सरदार स्कूल और मिलिट्री स्कूल की स्थापना भी की गई। 1903 में यहां दो नये कालेज और 1905 में पहला कन्या महाविद्यालय खोला गया। 1915 में पहली आयुर्वेद शाला और 1939 में कमलाराजा कन्या महाविद्यालय स्थापित किया गया। इस संस्थान में आज विभिन्न संकायों की 7500 छात्रायें अध्ययन करतीं हैं।

       आजादी से पूर्व ही 1946 में ग्वालियर में गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय की स्थापना की गई। 1949 में आयुर्वेद महाविद्यालय और 1950 में कृषि महाविद्यालय स्थापित कर दिया गया। 1957 में महारानी लक्ष्मीबाई के नाम पर राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय स्थापित किया गया, जो अब स्वयं डीम्ड यूनीवर्सिटी बन चुका है।

       ग्वालियर में 1964 में जीवाजी विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद 1984 तक शिक्षा के क्षेत्र में एक ठहराव सा आ गया। लेकिन 1985 के बाद ग्वालियर के तत्कालीन सांसद माधवराव सिंधिया ने इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल की। सिंधिया के प्रयासों से ग्वालियर को राष्ट्रीय यात्रा, पर्यटन प्रबंधन संस्थान मिला। उन्हीं के प्रयासों से ग्वालियर में अटलबिहारी बाजपेयी सूचना प्रबंधन तकनीकी का राष्ट्रीय संस्थान मिला। खान-पान प्रबंधन की राष्ट्रीय संस्था भी ग्वालियर आ गई।

       ग्वालियर में 59 साल बाद सरकार के प्रयासों से संगीत और कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना भी हो गई है। सरकार ने ग्वालियर में चिकित्सा विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प भी व्यक्त किया है। हाल ही में कृषि मंत्री ने यहां पशु चिकित्सा महाविद्यालय खोलने की भी घोषणा की है।

       ग्वालियर की भौगौलिक स्थिति के साथ ही यहां उपलब्ध बेहतर आवागमन और आवास सुविधाओं को देखते हुए निजीक्षेत्र के अधिकांश शैक्षणिक संस्थान और कोचिंग संस्थान ग्वालियर पहुँच चुके हैं। ग्वालियर में अब कला विज्ञान, चिकित्सा, तकनीक, पर्यटन शारीरिक शिक्षा, प्रबंधन, फैशन, एन सी सी. ही नहीं बल्कि नागरिक उड्डयन की शिक्षा देने वाले राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों की सुदृढ़  उपलब्ध है।

आई आई आई टी एम. सूचना तकनीक के क्षेत्र में आई क्रांति को देखते हुए ग्वालियर में भारत सरकार ने इंडियन इंस्टीटयूट आफ इन्फारमेशन टैक्नोलाजी एण्ड मैनेजमेण्ट की स्थापना ग्वालियर में की। 60 हैक्टेयर के विशाल क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय संस्थान में सूचना तकनीक और प्रशिक्षण के साथ ही बहुउद्देश्यी कार्यशालाओं, शोध परामर्श तथा कामकाजी लोगों के लिये सतत शिक्षण का काम पिछले एक दशक से हो रहा है।

       पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से जोड़ा जा चुका यह संस्थान पोस्ट ग्रेज्युएट, मैनेजेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम चला रहा है। इस संस्थान ने सूचना तकनीक एवं प्रबंधन के क्षेत्र में अपना अग्रणी स्थान बना लिया है। 

आई आई टी टी एम. पर्यटन एवं यात्रा पबंधन विषय पर देश में प्रशिक्षण की सुविधा गिनेचुने शहरों में उपलब्ध है। ग्वालियर में भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान 1983 से इस विषय से जुड़े छात्रों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर डिग्री एव डिप्लोमा प्रदान कर रहा है। इस संस्थान में देश के नामचीन विशेषज्ञ तो हैं ही, साथ ही यहां हॉस्टल की भी बेहतरीन सुविधा उपलब्ध है। यह संस्थान जीवाजी विश्वविद्यालय परिसर में स्वयं की इमारत में संचालित है।

      एम आई टी एस. ग्वालियर में तकनीकी शिक्षा का शुभारंभ आजादी के पहले ही उपलब्ध हो गया था। ग्वालियर के तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया ने 1957 में माधव इंस्टीटयूट ऑफ टैक्नोलॉजी एवं साइंसेज की स्थापना की थी। यहां बी ई. से लेकर पी एच डी. तक के अध्ययन-अध्यापक का प्रबंध है यहां सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रोनिक्स, कम्प्यूटर के अलावा कृषि इंजिनियरिंग की पढ़ाई की व्यवस्था है। संस्थान में फार्मा, पोलीटेक्नोलॉजी साइंस, वायो कैमिस्ट्री आदि विषयों के अध्ययन अध्यापन के इंतजाम किये जा रहे हैं।

जीवाजी विश्वविद्यालय- ग्वालियर के एज्युकेशन हब बनने में जीवाजी विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका है। जीवाजी विश्वविद्यालय की स्थापना 1966 में की गई। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने इस संस्थान का लोकार्पण किया था। यह विश्वविद्यालय लगभग प्रत्येक विषय के अध्ययन की उच्चस्तरीय व्यवस्था कर रहा है।

जीवाजी विश्वविद्यालय की अध्ययन  शालाओं में विज्ञान, अर्थशास्त्र, गणित, राजनीति  शास्त्र, के अतिरिक्त प्रबंधन, इंजिनियरिंग, पर्यटन के प्रथक संस्थान हैं। यह देश का अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है जहां प्रचलित विषयों के अलावा संगीत, ज्योतिष, योग, प्राकृतिक चिकित्सा जैसे पारंपरिक विषयों पर भी अध्ययन एवं शोध कराया जाता है।

संगीत शिक्षा - ग्वालियर सूचना प्रौद्यौगिकी का ही नहीं, संगीत शिक्षा का भी प्रचीन केन्द्र है। यहां पांच सौ साल पहले राजा मानसिंह तोमर ने पहली संगीत शाला स्थापित की थी। आज यहां माधव संगीत विद्यालय, चतुर संगीत महाविद्यालय, भारतीय संगीत महाविद्यालय के साथ ही  अब पूरा का पूरा संगीत विश्वविद्यालय स्थापित कर दिया गया है। संगीत को कैरियर बनाने के इच्छुक छात्र यहां विश्वविद्यालय में रह कर संगीत पर शोध के साथ ही गुरू शिष्य परंपरा के अन्तर्गत भी ज्ञानवर्धन कर सकते हैं। शीघ्र ही यहां एक ख्याल केन्द्र भी बन रहा है।

कृषि शिक्षा- कृषि प्रधान भारत देश में कृषि विज्ञान की शिक्षा के माध्यम से भी रोजगार की अनेक संभावनायें बनी हैं। ग्वालियर में अब तक कृषि विज्ञान में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा ही उपलब्ध थी, किंतु इसी साल से यहां राजमाता विजयाराजे कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ पी एच डी. की उपाधि हासिल की जा सकती है। मृदा परीक्षण, मृदा उपचार, उन्नत बीजों तथा कृषि उत्पादनों पर शोध और विकास के क्षेत्र में ग्वालियर जैसी व्यवस्थायें दूसरे क्षेत्रों में कम ही हैं।

शारीरिक शिक्षा - ग्वालियर शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षण और अनुसंधान का देश का ही नहीं अपितु एशिया का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहां 1957 में तत्कालीन शासकों द्वारा 150 हैक्टेयर क्षेत्रफल में स्थापित लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय अब विश्वविद्यालय बन चुका है। इस संस्थान में सभी प्रमुख खेलों के प्रशिक्षण, शोध , खेल चिकित्सा, खेल पत्रकारिता, योगा सहित सभी प्रमुख विषयों के अध्ययन, अध्यापन की विस्वस्तरीय व्यवस्थायें हैं। इस संस्थान का बहुत तेजी से विकास हो रहा है। यहां स्नातक शिक्षा से लेकर पी एच डी. तक के अध्ययन का प्रबंध है।

चिकित्सा शिक्षा- ग्वालियर में उत्तर भारत का सबसे पुराना मेडीकल कालेज है, गजराराजा मेडीकल कालेज की स्थापना ग्वालियर में 1946 में की गई थी। इस चिकित्सा महाविद्यालय से जुड़ा एक विशाल अस्पताल भी है यहां एम बी बी एस., एम एस., एम डी., के अध्ययन, अध्यापन की व्यवस्था सतत् चली आ रही है। राज्य सरकार यहां शीघ्र ही एक हजार विस्तर का अस्पताल और बनाने जा रहीं है।

       एलोपैथी के अलावा यहां आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय भी पांच दशकों से संचालित है। इसी महाविद्यालय से जुड़ी आयुर्वेदिक फार्मेसी भी है।

कैंसर चिकित्सालय एवं शोध संस्थान- ग्वालियर में 35 साल पहले स्थापित किया गया कैंसर चिकित्सालय एवं शोध संस्थान अब रिसर्च सेंटर के रूप में विकसित हो चुका है। यहां माइक्रोबायोलॉजी में स्नातकोत्तर शिक्षा के साथ ही नर्सिंग का एक विशाल कालेज है। निजी क्षेत्र में दंतचिकित्सा के अतिरिक्त नर्सिंग प्रशिक्षण के अनेक संस्थान ग्वालियर में हैं जो देश-दुनियां को प्रतिवर्ष सैकड़ों नर्स तैयार कर दे रहे हैं।

महिला शिक्षा- म प्र. में महिला शिक्षा के क्षेत्र में ग्वालियर स्वतंत्रा प्राप्ति से पहले से अग्रणीय रहा है। यहां प्रदेश का सबसे बड़ा कमलाराजा कन्या विद्यालय है। इस महाविद्यालय में अलग- अलग संकाय की 7500 सीटें हैं। ग्वालियर में महिला पोलिटेक्नीक, महिला आई टी आई. , महिला बी टी आई. और महिला शिक्षा संस्थान है। एशिया का सबसे बड़ा एन सी सी. महिला प्रशिक्षण संस्थान ग्वालियर को पहचान बन चुका है। यहां पूरे वर्ष ओरियेंटेशन कार्यक्रम चलते रहते हैं।

       अब अभिभावक अपने बच्चों का कोचिंग और अध्ययन के लिये कोटा, जयपुर, पुणे या इंदौर भेजने के बजाय ग्वालियर में ही रखना पसंद करते हैं। यहां शिक्षा की उच्च गुणवत्ता कम दामों पर उपलब्ध है। इसे देखते हुए देश के अलग अलग हिस्सों के छात्र ग्वालियर की ओर रूख करने लगे हैं।

      ग्वालियर में प्रबंधन और इंजिनियरिंग के छात्रों के लिये व्यवहारिक प्रशिक्षण की सुविधायें भी बहुतायत में हैं। भिण्ड के मालनपुर और मुरैना के बानमौर औद्यौगिक क्षेत्र में मैकेनिकल, इलेक्ट्रीकल, डेयरी, ऊर्जा, आटोमोबाइल, इलेक्ट्रोनिक्स के एक से बढ़कर एक संस्थान है।

      निकट भविष्य में ग्वालियर में आई टी. पार्क के अलावा एस ई.जेङ की स्थापना भी होने वाली है। ग्वालियर के विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा विकसित की जा रही टाउनशिप में भी देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों ने अपनी इकाइयां स्थापित करने का निर्णय किया है।

       अब दुनिया का शायद ही ऐसा कोई विषय होगा जिसके अध्ययन और अध्यापन की सुविधा ग्वालियर में उपलब्ध न हो। ग्वालियर में राष्ट्रीय स्तर के इंजीनियरिंग कालेजों के साथ ही प्रबंधन के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थान उपलब्ध है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में तो ग्वालियर में एशिया का अनूठा संस्थान है। ललित कलाओं और संगीत के छात्रों के लिये अब कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। छात्र यहां अध्ययन, अध्यापन के साथ ही तानसेन समारोह के माध्यम से देश के   प्रतिष्ठित संगीतज्ञों से सीधे रूबरू हो सकते हैं। कला के प्रदर्शन के लिये यहां तानसेन कला वीथिका भी है।

       सारांश यह है कि ग्वालियर में गरीब से गरीब और अमीर से अमीर छात्रों के लिये अध्ययन की श्रेष्ठतम सुविधायें उपलब्ध हैं। पब्लिक स्कूलों में रूचि रखने वालों के लिये सिंधिया स्कूल तो यहां है ही। रेलवे और उड्डयन के विषयों से जुड़े उच्च स्तरीय संस्थान ग्वालियर को 'एज्यूकेशन हब' के रूप में मान्यता दिलाने में कामयाब रहे हैं।

       ग्वालियर के आई आई टी एम. और ए बी आई. आई आई टी एम में तो प्रवेश अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षाओं के जरिये होता है। इंजिनियरिंग, चिकित्सा एवं प्रबंधन संस्थानों में राज्यस्तर की प्रवेश परीक्षा म प्र. व्यवसायिक परीक्षा मण्डल की ओर से संचालित की जाती है। म प्र. के तकनीकी प्रबंधन और चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश एवं शिक्षा शुल्क अन्य शहरी और राज्यों के मुकाबले काफी कम हैं।